शीत युद्ध का दौर (Cold War Era)| Class 12| Chapter 1| Political Science

शीत युद्ध का दौर


शीत युद्ध का दौर: 
शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध होता है जिसमे युद्ध का क्षेत्र मानव मस्तिष्क होता है ना की कोई  भूमि। इस अध्याय में आप कक्षा 12 के राजनीतिक विज्ञान (समकालीन विश्व राजनीति) के पहले अध्याय शीत युद्ध का दौर पढ़ेंगे तथा कक्षा 12 की वार्षिक परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर भी दिए गए हैं। इस आर्टिकल का स्रोत NCERT की पाठ्यपुस्तक है। 

परिचय 

  • समकालीन विश्व राजनीति का आरंभ सन् 1945 में शीत युद्ध की शुरुआत से सन् 1991 में सोवियत संघ के विभाजन तक माना जाता है। 
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात दो महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का उद्भव हुआ। 
  • इन दोनों महाशक्तियों संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का वर्चस्व शीत युद्ध के केंद्र में निहित था। 
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने  विश्व के दोनों महाशक्तियों के दबदबे को चुनौती देकर अपने प्रभाव का विस्तार किया। 

क्यूबा का मिसाइल संकट 

  • क्यूबा मिसाइल संकट 1962 में हुआ। उस समय क्यूबा के राष्ट्रपति फ़िदेल कास्त्रो थे। 
  • क्यूबा अमेरिका के तट से जुड़ा एक छोटा सा द्वीपीय देश है, जिसका जुड़ाव अमेरिका के विरोधी देश सोवियत संघ से था। 
  • क्यूबा ने अपने आप को  सोवियत संघ से जोड़ रखा था जिस कारण सोवियत संघ उसे समय- समय पर कूटनीतिक और वित्तीय सहायता प्रदान करता रहता था। 
  • तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति नीकीता खुशचेव को यह चिंता सता रही थी की अमेरिका साम्यवादियों द्वारा शासित क्यूबा पर आक्रमण कर वहाँ के राष्ट्रपति फ़िदेल कास्त्रो का तख्तापलट कर देगा जिस कारण 1962 में निकिता खुशचेव ने अपनी परमाणु मिसाइले क्यूबा पर तैनात करवा दिया। 
  • सोवियत संघ के क्यूबा में परमाणु मिसाइले तैनात करने से अमेरिका पहली बार किसी नजदीकी परमाणु मिसाइल की क्षेत्र की सीमा में आ गया था। क्यूबा के इन परमाणु हथियारों के कारण अमेरिका के भू-भाग के लगभग दोगुने शहरों पर हमला किया जा सकता था। 
  • जब यह खबर अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कनेडी को पता चला तो उसने अपने सलाहकारों से कहकर अपने अमेरिकी जंगी बेड़ों को आगे करवा दिया ताकि सोवियत संघ द्वारा अमेरिका भेजी जा रही मिसाइलों को रोका जा सके। 
  • इस घटना को ही क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है। क्यूबा मिसाइल संकट शीतयुद्ध की चरम बिन्दु मानी जाती है। 

शीतयुद्ध क्या है?

  • शीत युद्ध का काल 1945-1991 तक माना जाता है। 
  • शीत युद्ध एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे दो देश या दो से अधिक देशो के बीच रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना बनी रहती है पर युद्ध नहीं होता।
  • शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध होता है जिसमे विरोधी देश सीधी तरीके से एक दूसरे पर वार नहीं करते। शीत युद्ध में कोई भीषण रक्तपात नहीं होता। 
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात दो महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का उदय हुआ और इन दोनों महाशक्तियों की विश्व में एक मात्र महाशक्ति बनने की होड़ ने शीतयुद्ध को जन्म दिया। 
  • इस  युद्ध की समाप्ति 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ हुआ।

दो ध्रुवीय विश्व का आरंभ 

  • शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियां अपने -अपने  क्षेत्र का विस्तार करने के लिए अन्य छोटे-छोटे देशों से गठबंधन कर रही थी तथा उन्हें यह आशवासन दे रहे थे कि वे विरोधी दुश्मन देश से उनकी रक्षा करेंगे इसलिए छोटे -छोटे देश उनके गुट में शामिल हो रहे थे । 
  • महाशक्तियों के अपने-अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के कदम ने विश्व को दो गुटों में - पूर्वी (सोवियत संघ) तथा पश्चिमी (संयुक्त राज्य अमेरिका) में बांट दिया। यह विभाजन सबसे पहले यूरोप में हुआ था।  पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत संघ के खेमे में तथा पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश संयुक्त राज्य अमेरिका के खेमे में सम्मिलित हो गए थे। 
  • पश्चिमी गठबंधन ने तीन संगठन बनाएं:
    • NATO :- North Atlantic Treaty Organisation.(उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन)
      स्थापना :- अप्रैल 1949
      सम्मिलित देश
       :- 12

    • SEATO :- South East Asia Treaty Organisation. (दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन)
      स्थापना :- 1954

    • CENTO :- Central Treaty Organisation. (केंद्रीय संधि संगठन)
      स्थापना :- 1955

  • पूर्वी गुट ने एक संगठन बनाया: 
    • वारसा संधि या वारसा पैक्ट
      स्थापना :- 1955 


शीत युद्ध के दायरे 

  • शीतयुद्ध की दायरों से हमारा अभिप्राय ऐसे इलाकों से होता है जहां विपक्षी गुटों में विभाजीत देशों के मध्य संकट की स्थिति उतपन्न हुई अथवा होने की संभावना उतपन्न हुई किन्तु बात एक सीमा से आगे नहीं बढ़ी। 
  • कोरिया युद्ध :- 1950-1953, बर्लिन युद्ध :- 958-19621, कांगो युद्ध :- 1960 के दशक के आरंभ में। ये सभी शीत युद्ध के दायरे है। 
  • तीन महत्वपूर्ण समझोते :- (1) परमाणु अप्रसार संधि।  (2) परमाणु  प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि (3) परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि। ये तीनों संधियाँ दोनों महाशक्तियों ने अस्त्र नियंत्रण द्वारा हथियारों की होड़ पर नियंत्रण लगाने के लिए किया था। 

दो ध्रुवीयता को चुनौती- गुटनिरपेक्षता 

  •  गुटनिरपेक्षता दोनों गुटों (संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ) से अलग रहने की नीति थी। 
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक 5 नेता माने जाते है: (1) भारत के पंडित जवाहरलाल नेहरू (2) युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो (3) मिस्र के अब्दुल गमाल नासिर (4) इंडोनेशिया के सुकर्णो (5) घाना के वामे एनक्रूना। 
  •  गुटनिरपेक्ष आंदोलन का आधार 1956  का बैठक था। इसका प्रथम सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ जिसमे 25 सदस्यों ने हिस्सा लिया था। 
  • 2006 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का 14वां सम्मेलन हवाना (क्यूबा) में हुआ जिसमे सम्मिलित सदस्यों देशों की 116 थी, साथ ही इसमे 15 पर्यवेक्षक देश भी सम्मिलित थे।

          नव अन्तराष्ट्रिय आर्थिक व्ययवस्था 

          नव अन्तराष्ट्रिय आर्थिक व्यवस्था एक ऐसा व्यवस्था है जिसके अंतर्गत इस विचारधारा पर जोर दिया गया था की अल्पविकशीत देशों को आर्थिक रुप से मजबूत बनाया जाना चाहिए क्योंकि उस समय गुटनिरपेक्ष आंदोलन में जुड़े अधिकांश देश नवस्वतंत्र तथा अल्पविकशीत थे। अगर कोई देश आर्थिक विकाश में कमजोर रहता है तो उसे धनी देशों पर आश्रित रहना पड़ेगा, ऐसे में कोई धनी देश उसे अपना उपनिवेश भी बना सकता है। 
          1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन में "टूवर्ड्स ए न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट" शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश किया गया। इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से वैश्विक व्यापार प्रणाली में सुधार के संबंध में प्रस्ताव था। इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
          •  अल्प विकसित देशों का व्यापार प्रसाद पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी ताकि वे अपना माल इन बाजारों में बेच सके और उससे लाभ उठा सके
          •  अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं। 
          •  अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में अल्प विकसित देशों की भूमिका में वृद्धि होगी। 
          •  पश्चिमी देशों से आयात की जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी
          1980 के दशक में विकसित देशों द्वारा इसका विरोध किया जाने लगा जिस कारण नव अन्तराष्ट्रिय आर्थिक व्यवस्था को बनाए और चलाए जाने के प्रयत्न धीमे हो गए। 

          भारत और शीतयुद्ध 

          • शीत युद्ध के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया था। 
          • भारत ना तो खुद दोनों महाशक्तियों  में से किसी एक में शामिल हुआ और ना ही नव स्वतंत्र देशों को जो उपनिवेशो की गिरफ्त से स्वतंत्र हुए थे उनको गुटों में सम्मिलित होने देने के पक्ष में था। 
          • भारत में दोनों गुटों के मध्य उभरे मतभेदों को कम करने का प्रयत्न किया और इस तरह से उसने इन मतभेदों को युद्ध में बदलने से रोका। 


          प्रश्नावली 

          Q.1. शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है?
          (क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी। 
          (ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था। 
          (ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की। 
          (घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे। 
          उत्तर- (घ) 
          अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।

          Q.2. निम्न में से कौन सा कथन गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
          (क) 
          उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना
          (ख) 
          किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इनकार करना 
          (ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना 
          (घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केंद्रित करना
          उत्तर-
          (ग) 
          वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना 

          Q.3. नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिन्ह लगाएं- 
          (क) गठबंधन के सदस्यों को अपने क्षेत्र में महा शक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था
          (ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का चयन करना था
          (ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था
          (घ) महाशक्तिया सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थी
          उत्तर- (क) सही, (ख) सही, (ग) सही, (घ) गलत 

          Q.4. नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था? 
          (क) पोलैंड 
          (ख) फ्रांस 
          (ग) जापान 
          (घ) नाइजीरिया 
          (ड़) उत्तरी कोरिया 
          (च) श्रीलंका 
          उत्तर-
          (क) सोवियत संघ 
          (ख) संयुक्त राज्य अमेरिका 
          (ग)  संयुक्त राज्य अमेरिका 
          (घ)  गुट निरपेक्ष  
          (ड़)  सोवियत संघ 
          (च) गुट निरपेक्ष  

          Q.5. शीत युद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण- यह दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुई इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
          Ans: शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियंत्रण- यह दोनों ही प्रक्रियाएं पैदा हुई थी। इसके कारण अग्रलिखित है: 

          शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ 
          शीतयुद्ध में हथियारों की होड़ की शुरुआत संदेह और प्रतिद्वंदीता के कारण हुई। 1945 में अमेरिका द्वारा जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी में बम गिराए जाने के बाद जापान ने आत्म समर्पण कर दिया था इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति  हो गई थी परंतु सभी देशों के मन में यह भय था कि उसका विरोधी देश उसपर आक्रमण कर सकता है जिस कारण सभी ने हथियार बनाने बंद नहीं किए बल्कि और बढ़ा दिया। जर्मनी 4 पनडुब्बी बनाता तो इंग्लैंड 8 पनडुब्बी बनाता। परमाणु हथियार भी बड़ी संख्या में बनने लगी तथा दोनों ही महाशक्तियाँ परमाणु हथियारों की दृष्टि से प्रतिद्वंदीता करने लगी जिससे हथियारों की होड़ हुई। 

          शीतयुद्ध में हथियारों पर नियंत्रण 
          द्वितीय विश्व युद्ध में बहुत तबाही मची थी। दुनिया इस युद्ध की मार झेल चुकी थी और अब होने वाले परमाणु विध्वंस को झेलना किसी भी राष्ट्र के बूते की बस की बात नहीं थी। परमाणु हथियारों की होड़ से संकट उत्पन्न हो गया था अतः हथियारों पर नियंत्रण जरूरी था। हथियारों पर नियंत्रण के पीछे यह समझ काम कर रही थी कि अब द्वितीय विश्व युद्ध की तरह भीषण रक्तपात एवं विध्वंस को झेलना किसी भी राष्ट्र के बस की बात नहीं थी। 

          Q.6. महाशक्तियाँ छोटे-छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थी?
          Ans: महाशक्तियों द्वारा छोटे छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन रखने के निम्नलिखित कारण थे:
          1. हथियार व सैना का संचालन:
            छोटे छोटे देशों से महाशक्तियाँ अपने हथियार और सैना का संचालन करना चाहती थी। 

          2. सैनिक ठिकाने:
            महाशक्तियाँ छोटे छोटे देशों में सैनिक ठिकाने स्थापित करना चाहती थी जिससे वे एक दूसरे की जासूसी कर सके। 

          3. सैन्य खर्च:
            छोटे छोटे देश महाशक्तियों के सैन्य खर्च वहन करने में मददगार सिद्ध होते थे। 

          4. वर्चस्व:
            महाशाक्तियाँ छोटे छोटे देशों के साथ गठबंधन अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए भी करती थी। उनका मानना था की जिस महाशक्ति के पास जीतने ज्यादा सैन्य गठबंधन है वह उतना ज्यादा शक्तिशाली है। 
               
            अतः महाशक्तियाँ केवल अपने लाभ के लिए ही छोटे छोटे देशों के साथ गठबंधन करती थी परंतु कभी कभी जरूरत पड़ने पर वे छोटे देशों की मदद भी करते थे। गठबंधन के बदले वे उन्हे दुशमन देश से सुरक्षा का आश्वाशन देते थे। 

          Q.7. कभी कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था? क्या आप इस कथं से सहमत है? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दे?
          Ans: हाँ, मैं इस बात से सहमत हूँ की शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। शीतयुद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियाँ खुद को शक्तिशाली दिखाना चाहते थे इसके लिए वे छोटे छोटे देशों के साथ गठबंधन कर रहे थे और इसके लिए वे बल का भी प्रयोग कर रहे थे। 
          वैसे तो शीतयुद्ध का मतलब होता है एक ऐसा युद्ध जिसमे हथियारों का प्रयोग न किया जाए परंतु शीतयुद्ध के दौरान बड़ी संख्या में परमाणु मिसाइल तथा हथियारों का निर्माण किया गया। यदि एक गुट 4  मिसाइले बनाता तों उसका विरोधी गुट 8 मिसाइले बनाता। फिर पहला गुट 8 से अधिक मिसाइले बनाता तो फिर उसका विरोधी गुट उससे अधिक मिसाइले बनाता।
           अतः इस प्रकार हम कह सकते है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नही था। 

          Q.8. शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते है कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया है? 
          Ans: शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति:
          शीतयुद्ध के दौरान भारत अमेरिका या सोवियत संघ दोनों में से किसी भी गुट में शामिल नहीं था। भारत गुट निरपेक्षता आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। इस प्रकार किसी एक महाशक्ति कि गुटबाजी से दूर भारत दोनों महाशक्तियों से रिश्ता बनाए रखा था। शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका और सोवियत संघ कि गुटबाजी से अपने आप को पृथक रखा। वह हमेशा ऐसी स्थिति में रहा कि अगर कोई एक महाशक्ति भारत पर अनावश्यक दबाव डाले तो वह दूसरी महाशक्ति से अपना संबंध बढ़ा सकता था। 

          इस नीति में भारत के हित 
          इस नीति के जरिए भारत ऐसे अंतर्राष्ट्रीय निर्णय और पक्ष ले सका जिसमे उसका हित निहित हो न कि अमेरिका या सोवियत संघ का। 

          Q.9. गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुंचाई?
          Ans: गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। तीसरी दुनिया में वे देश शामिल थे जो हाल ही में विदेशी शिकंजे से मुक्ति पाए है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़े देशों को तीसरी दुनिया में शामिल किया जाता है। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब तीसरे विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में पर्याप्त मदद पहुचाई है। 
          तीसरी दुनिया के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। इसी विचार से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था कि धारणा का जन्म हुआ। 1961 में बेलग्रेड में सम्पन्न गुटनिरपेक्ष आंदोलन के पहले सम्मेलन में आर्थिक मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण नही थे परंतु 1970 के दशक में मध्य तक आर्थिक मुद्दे महत्वपूर्ण हो गए। 


          Q.10. 'गुटनिरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है'। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करे। 
          Ans: गुटनिरपेक्ष आंदोलन अब अप्रासंगिक हो गया है क्योंकि रूसी गणराज्यों ने अमेरिका के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर लिए है और अब ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व में गुटबन्दी समाप्त हो गई है। इस संदर्भ में अब सुझाव दिया जाता है कि गुटबन्दी समाप्त होने के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य पूरा हो गया है। फिर भी इस आंदोलन कि प्रासंगिकता निम्नलिखित कारणों से है:
          1. सबसे अधिक शक्तिशाली पूंजीवादी देश अमेरिका है। सभी गुट निरपेक्ष देश मिलकर उसके शोषण का विरोध कर सकते है। 
          2. गुट निरपेक्ष आंदोलन के साथ होकर सशक्त शक्ति बन सकते है तथा विकसित देश कि खराब नीतियों का विरोध कर सकते है। 
          3. यह आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतंत्रधर्मी बनाने में मददगार हो सकता है। 

          शीतयुद्ध का दौर 1 अंक स्तरीय प्रश्न उत्तर 

          Q.1. क्यूबा मिसाइल संकट कब हुआ?
          Ans: 1962

          Q.2. अमेरिका ने जर्मनी के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम कब गिराया था?
          Ans: 1945

          Q.3. दूसरी दुनिया किसे कहते है?
          Ans: सोवियत संघ 

          Q.4. शीतयुद्ध की शुरुआत कब हुई?
          Ans: 1945

          Q.5. शीतयुद्ध का अंत कब हुआ?
          Ans: 1991

          Q.6. NATO किसका सैन्य संगठन है?
          Ans: संयुक्त राज्य अमेरिका 

          Q.7. NATO की स्थापना कब हुई? 
          Ans: अप्रैल 1949

          Q.8. सोवियत संघ की संगठन का नाम क्या था? 
          Ans: वारसा पैक्ट या वारसा संधि 

          Q.9. प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कब हुआ?
          Ans: 1961

          Q,10. प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ हुआ था?
          Ans: बेलग्रेड में 

          Q.11. गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीव कब राखी गई?
          Ans: 1955

          Q12. गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीव किस सम्मेलन में राखी गई थी?
          Ans: बाडुंग सम्मेलन में 

          Q.13. पूंजीवादी विचारधारा का नेतृत्व कौन सा देश कर रहा था?
          Ans: संयुक्त राज्य अमेरिका 

          Q.15. साम्यवादी विचारधारा का नेतृत्व कौन सा देश कर रहा था? 
          Ans: सोवियत संघ 

          Q.16. SEATO का नेतृत्व कौन सा महाशक्ति कर रहा था?
          Ans: संयुक्त राज्य अमेरिका 

          Q.17. CENTO का विस्तारित रूप क्या है? 
          Ans: Central Treaty Organisation ( केन्द्रीय संधि संगठन) 

          Q.18. SEATO का विस्तारित रूप क्या है?
          Ans: South East Asia Treaty Organisation ( दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन)

          Q.19. NATO का विस्तारित रूप क्या है?
          Ans: North Atlantic Treaty Organisation ( उत्तर अटलांटिक संधि संगठन)

          Q.20. वारसा संधि का गठन कब हुआ?
          Ans: 1955

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